मिट्टी के घड़ों की जगह फ्रीज ने ली

मिट्टी के घड़ों की जगह फ्रीज ने ली

दी न्यूज़ एशिया समाचार सेवा।

मिट्टी के घड़ों की जगह फ्रीज ने ली

तपिश से मिट्टी के बर्तनों का कारोबार बढ़ा
  मेरठ।  एक समय था जब लोग चूल्हे पर मिट्टी के बर्तन ही इस्तेमाल किया करते थे, लेकिन जैसे-जैसे आधुनिकता का दौर आया रसोइयों से मिट्टी के बर्तन लुप्त होते चले गए और स्टील व अन्य धातुओं के बर्तनों ने उनकी जगह ले ली, लेकिन कोरोना महामारी ने लोगों को दोबारा खोयी हुई परम्परा मिट्टी के बर्तनों पर लौटा दिया।
 अप्रैल माह गर्मी का मौसम दस्तक दे चुका है। बाजारों में दुकानों पर  मिट्टी के विभिन्न प्रकार के घडे सज गये है।। इसमें खासकर मिट्टी के घड़े, सुराही, मटकी या मटका आदि शामिल हैं। सेहत के लिए फ्रीज का पानी हानिकारक होता है, क्योंकि ये गले की कोशिकाओं का तापमान एकदम से गिरा देता है। जिस कारण टॉन्सिल, गले में खराश और खांसी होने की संभावना बढ़ जाती है। वहीं, मिट्टी के घड़ों का पानी गले की कोशिकाओं के तापमान को नहीं गिराता है। इसलिये इससे गला खराब होने की संभावनाएं न के बराबर हो जाती है।
  कारोबारी उमेश की मानें तो माह यानि दिसंबर, जनवरी व फरवरी में कारोबार बहुत ही धीमा चलता है, लेकिन बीते कुछ सालों से मार्च आते ही वातावरण का तापमान बढ़ने के कारण कारोबार गर्मी का मौसम आने से पहले ही रफ्तार पकड़ लेता है। गर्मी आते ही मिट्टी के बर्तनों की डिमांड बढ़ने लगती है। लोगों की पसंद को ध्यान में रखते हुए इस बार बाजारों में डिजाइनर व आकर्षक बोतलें, मटके व कैम्पर तैयार किए गए हैं। इन बोतलों और मटकों पर रंग-बिरंगे फूल और पत्तियों की नक्काशी की गई है। साथ ही इनमें टोटी भी लगाई गई है। जिससे पानी लेने में असुविधा न हो। टोंटी को उठाएं और ग्लास आसानी से भर जाए। वहीं, बोतलों में एयर टाइट ढक्कन की सुविधा दी गयी है। जिससे पानी ज्यादा समय तक ठंडा रह सके व लीक न हो।
मटके का पानी पीने से स्वास्थ्य को लाभ मिलता है। इसमें मौजूद विटामिन व मिनरल लू लगने बचाते हैं। साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाते हैं। गले के रोग, पेट के रोग व एसिडिटी को रोकते हैं तथा साथ ही साथ अर्थराइटिस जैसी बीमारी को होने से भी रोकते हैं। 
आइटम रेट (रुपये में)

मिट्टी का तवा 100

हंडिया 50 से 70

सुरैया 350

मटका 120 से 250

बोतल 120 से 220