आस्था संग अंधविश्वास का पर्व गंगा दशहरा

आस्था संग अंधविश्वास का पर्व गंगा दशहरा

दी न्यूज़ एशिया समाचार सेवा ।

आस्था संग अंधविश्वास का पर्व गंगा दशहरा

       डिबाई। गंगा दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है जो ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। इसी दिन गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था। आदि काल से ही भारतीय जनमानस पर जीवनदायिनी गंगा का माँ सरीखा प्रभाव है। एक मान्यता के अनुसार इस दिन महा पराक्रमी योद्धा आल्हा - ऊदल का जन्मदिन भी है। लेकिन कालांतर में आस्था, श्रद्धा, भक्ति के साथ कुछ अंध विश्वास भी इस पर्व के साथ जुड़ गए हैं। 

       भारत विकास परिषद डिबाई के अध्यक्ष गिरीश गुप्ता एडवोकेट, उपाध्यक्ष कैलाश पंवार, सचिव इं. सोमवीर सिंह लोधी और प्रांतीय कार्यकारिणी परिषद सदस्य पीपी सिंह ने डिबाई क्षेत्र में गंगा तट पर कर्णवास में लगने वाले विशाल दशहरा मेले का अवलोकन किया। डिबाई से कर्णबास जाने वाले मार्ग पर दर्जनों की संख्या में बाल, युवा, महिला, पुरुष लेटकर साष्टांग दंडवत यात्रा करते हुए दिखे। उनके धूल- धूसरित शरीर से कुछ की कुहनी, घुटने व हाथ खून झलकता और छाले भी दिख रहे थे। भारत विकास परिषद के पदाधिकारियों ने इन व्यक्तियों पर एक सर्वे करने का मन बनाया। आकस्मिक रूप से चयनित साष्टांग दंडवत यात्रा करने वाले लोगों में जिन लोगों को हमने चयनित किया उनमें रूपेश बघेल, किशन कुमार कश्यप, सोमबीर प्रजापति, हरीश कुमार जाट, विकास चौधरी, दीपक चौधरी, सुषमा बघेल, उषा बघेल, चंद्र बोस बघेल, विष्णु धीमर, दिनेश कश्यप, सुरेश प्रजापति, सतीश कश्यप, रोहिताश कश्यप, कुलदीप बघेल, धर्मेंद्र  लोधी, अमित लोधी, ललित अ.जा.  कुलदीप अ.जा. दिनेश कुमार बघेल, दीपक कुमार बघेल, ललित खटीक, कुलदीप खटीक हैं, जो डिबाई तहसील के विभिन्न ग्रामों से निवासी हैं।

        सर्वेक्षण में यह पाया गया की साष्टांग दंडवत यात्रा करने वालों में 48% यात्री अशिक्षित या साक्षर मात्र थे जबकि 38% यात्री कक्षा 8 पास और 14% यात्री कक्षा मात्र 10 पास थे। जब उनसे यात्रा का उद्देश्य पूछा गया तो किसी का उत्तर था कि उनके गुरु जी ने बताया है, किसी ने कहा कि पंडित जी ने कहा है, किसी ने परिवार के किसी व्यक्ति के बीमार होने पर उसके स्वास्थ्य लाभ के लिए और किसी ने नौकरी प्राप्त करने का उद्देश्य बताया। लेकिन महिला यात्रियों से जब उनकी यात्रा का उद्देश पूछा गया तो उन्होंने सवाल का जवाब टालना चाहा और  सकुचाते हुए कहा कि अपने मन की बात है हम किसी को क्यों बताएं?

      गहन मंथन के बाद भारत विकास परिषद के उक्त  सदस्यों ने पाया की साष्टांग दंडवत जैसी कष्टकारी यात्रा  पीछे कोई सोची-समझी नीति काम कर रही है जो पिछड़े व दलित समाज के लोगों की अशिक्षा का लाभ उठाकर उन्हें अंधविश्वास के मार्ग पर धकेल रही है। सर्वे में पाया गया कि इन लोगों में कोई भी उच्च शिक्षित व्यक्ति, नेता, अधिकारी, पत्रकार, डॉक्टर, वकील, उद्योगपति, व्यापारी न था। सबसे अधिक अचंभित करने वाली बात थी कि इनमें एक भी व्यक्ति सवर्ण अथवा उच्च वर्ग से संबंधित नहीं था। प्रश्न पैदा होता है कि कौन है वह, जो देश की आगामी पीढ़ी को शिक्षा व राष्ट्र हितकारी मार्ग से भटका कर अंधविश्वास और पाखंड के रास्ते पर धकेल रहा है? निश्चित ही जो लोग मानव संसाधन को अनुत्पादक मार्ग पर धकेल कर उनके भविष्य से खिलवाड़ कर भारत के भविष्य को गर्त में ले जाने में संलिप्त हैं। क्या ऐसे ही बनेगा भारत विश्व गुरु?