गोवर्धन पूजा पर मां बगलामुखी धाम यज्ञशाला मंदिर साकेत में हुआ हवन, अन्नकूट भंडारे का आयोजन

गोवर्धन पूजा पर मां बगलामुखी धाम यज्ञशाला मंदिर साकेत में हुआ हवन, अन्नकूट भंडारे का आयोजन

दी न्यूज एशिया समाचार सेवा |

गोवर्धन पूजा पर मां बगलामुखी धाम यज्ञशाला मंदिर साकेत में हुआ हवन, अन्नकूट भंडारे का आयोजन

मेरठ।मंगलवार को गोवर्धन पूजा के अवसर पर मां बगलामुखी धाम यज्ञशाला श्री दक्षिणेश्वरी काली पीठ प्राचीन वन खंडेश्वर महादेव शिव मंदिर कैलाश प्रकाश स्टेडियम चौराहा साकेत मेरठ में हवन पूजन व विशाल भंडारे का आयोजन किया गया।

आचार्य प्रदीप गोस्वामी, राज पुरोहित, मां बगलामुखी प्रत्यंगिरा धाम यज्ञशाला अमर प्रेम आश्रम रानी गली भूपत वाला हरि का द्वार हरिद्वार एवं मां बगलामुखी धाम यज्ञशाला श्री दक्षिणेश्वरी काली पीठ प्राचीन वन खंडेश्वर महादेव शिव मंदिर साकेत द्वारा बताया गया कि आज गोवर्धन पूजा के अवसर पर मंदिर में हवन पूजन और अन्नकूट प्रसाद का भंडारा किया गया। उन्होंने बताया कि गोर्वधन पूजा के निमित्त स्नेह निमंत्रण श्री कृष्ण प्रभु गोवर्धन पर्वत को वाम भुजा की कनिष्का अंगुली पर सात दिवस उठाया था जिससे जुड़ी है 56  छप्पन भोग की प्रथा है और 56 भोग क्यों लगाया जाता है, उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा कि हिन्दू धर्म में भगवान को छप्पन भोग का प्रसाद चढ़ाने की बड़ी महिमा है। भगवान को लगाए जाने वाले भोग के लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है।

ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। उस कमल की तीन परतें होती हैं. प्रथम परत में “आठ“, दूसरी में “सोलह” और तीसरी में “बत्तीस पंखुड़िया” होती हैं। प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं। इस तरह कुल पंखुड़ियों की संख्या छप्पन होती है। 56 संख्या का यही अर्थ है।यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है।अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं।ऐसा भी कहा जाता है कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर भोजन कराती थी, अर्थात बालकृष्ण आठ बार भोजन करते थे।

जब इंद्र के प्रकोप से सारे ब्रज को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया। आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र की वर्षा बंद हो गई है, सभी ब्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा, तब दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले ब्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके ब्रज वासियों और मया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ, भगवान के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन और अष्ट पहर के हिसाब से 56 व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया।

गोपिकाओं ने भेंट किए छप्पन भोग-----

श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप में प्राप्त हों। श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी। व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन भोग का आयोजन किया।

छप्पन भोग हैं छप्पन 

सखियां -----

ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं।

उस कमल की तीन परतें होती हैं -----

प्रथम परत में "आठ", दूसरी में "सोलह" और तीसरी में "बत्तीस पंखुड़िया" होती हैं। प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं। इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है। 56 संख्या का यही अर्थ है।

इस अवसर पर आचार्य प्रदीप गोस्वामी,  आशा गोस्वामी, कामेश शर्मा, लोकेश दास, अरविंद गर्ग, विपुल सिंघल, विशाल बंशल, ओमबीर ठाकुर, वैभव, नरेश कुमार, बबीता,  गोपाल भया आदि ने सेवा कर आशीर्वाद प्राप्त किया।