किसानों मजदूरों कामगारों की स्थिति को लेकर बनाए जा रहे कानून की समीक्षा को लेकर संगोष्ठी का आयोजन

किसानों मजदूरों कामगारों की स्थिति को लेकर बनाए जा रहे कानून  की समीक्षा को लेकर संगोष्ठी का आयोजन

दी न्यूज़ एशिया समाचार सेवा।

किसानों मजदूरों कामगारों की स्थिति को लेकर बनाए जा रहे कानून

की समीक्षा को लेकर संगोष्ठी का आयोजन

मेरठ। शुक्रवार को चौधरी चरण सिंह विवि के बृहस्पति भवन में अर्थशास्त्र विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ एवं ग्लोबल यूनाइटेड पंचायत के संयुक्त तत्वाधान में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें विषय विशेषज्ञों ने आज के परिपेक्ष में किसानों मजदूरों कामगारों की स्थिति को लेकर बनाए जा रहे कानून की समीक्षा की और इन्हें नाकाफी बताया।

       ग्रामीण किसान कामगारों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र का संकल्प विषय पर आधारित संगोष्ठी में वक्ताओं के कथन का सार यह रहा कि इतिहास के झरोखे में भारत गांव किसान कारीगरों और कामगारों की मेहनत से निर्मित एक अभिनव राष्ट्र है। पिछले तीन दशकों में संयुक्त राष्ट्र संघ के संयोजन में हुए अंतरराष्ट्रीय समझौता संधिया और कानून के आलोक में इन गांवों के जरिए देश के विकास की अपेक्षाएं जगी थी। देखने में आया है कि सरकारों की कॉर्पाेरेट समर्थक नीतियों से इन गांवों और किसान कामगारों के वजूद पर ही संकट के बादल घिरते दिखाई देने लगे हैं। ऐसे में जरूरी है कि देश का शिक्षित युवा और बुद्धिजीवी एकजुट होकर अंतरराष्ट्रीय परिपेक्ष्य में परिस्थितियों का व्यापक अध्ययन करके सरकार को उचित सुझाव दें। ताकि समय रहते किसान और भारत की जीवन रेखा मानी जाने वाली कृषि में कॉर्पाेरेट के प्रत्यक्ष दखल को रोककर सामाजिक सहकार पर आधारित सुदृढ़ व्यवस्था में देश का विकास सुनिश्चित किया जा सके। उपरोक्त विचार आज यहां चौधरी चरण सिंह विवि के बृहस्पति भवन में ग्लोबल यूनाइटेड पंचायत के तत्वावधान में उत्तर प्रदेश ग्राम प्रधान संगठन द्वारा विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित सेमिनार में व्यक्त किए गए। सेमिनार में देश के विभिन्न स्थानों से आए विषय विशेषज्ञ एवं शिक्षकों और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा यह विचार व्यक्त किए गए। 

कार्यक्रम की प्रस्तावना में किसान एक्टिविस्ट वीरेश तरार ने बताया कि 1936 से पूर्व देश की स्थिति में भारत के गांव की साहूकार और जागीरदारों के तथा जमीदारों के मकड़ जाल से किसान को मुक्ति दिलाने के लिए तत्कालीन नेता चौधरी चरण सिंह चौधरी छोटू राम आदि किसान नेताओं ने कुछ कानून बनाए। जिनमें गोल्डन एक्ट प्रमुख कानून था। उसके बाद आजादी के दौर में जमीदारा खात्मा कृषि मंडी भूमि सुधार बीज वितरण व्यवस्था पशुपालन हरित क्रांति और श्वेत क्रांति आदि कार्यक्रम चलाकर किसानों की हालत को सुधारने का प्रयास किया गया जो नाकाफी साबित हुआ।

इधर 1992 के बाद गेट समझौते को स्वीकार करके विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बनकर भारतवर्ष ने एक विकसित राष्ट्र बनने का सपना संजोया था। इसके लिए पर्यावरण जैव विविधता सतत विकास आदि विषयों पर आधारित कई समझौते भी भारत सरकार ने वैश्विक स्तर पर किए। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राजस्थान से आए हनुमान राम चौधरी ने संयुक्त राष्ट्र के इन अंतरराष्ट्रीय कानून की कानून की विस्तृत व्याख्या की। संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र 2018 को आज का प्रमुख विषय बताते हुए कहा कि इसको लेकर विस्तृत चिंतन और मंथन की आवश्यकता है उन्होंने बताया कि इस इस घोषणा पत्र के 28 अनुच्छेदों में भारत के किसने कामगारों कारीगरों और श्रमिकों तथा उनके परिवारों के आर्थिक स्वास्थ्य संबंधी विकास को लेकर उनके अधिकारों के विषय में विस्तार से संकल्प किए गए हैं यह संकल्प विश्व भर के लगभग 192 देशों ने मिलकर किए हैं भारतवर्ष भी उसका हिस्सा रहा है यह सारे संकल्प मानव अधिकार का रूप ले चुके हैं उन्होंने कहा कि भारत सरकार इन तमाम अधिकारों को किसानों एवं ग्रामीण कामगारों को प्रदान करने में विफल रही है। आज के कार्यक्रम के माध्यम से उन्होंने आभार व्यक्त किया कि समाज के चिंतनशील जागरूक लोगों एवं शिक्षित युवाओं को आगे आकर गांव-गांव इस दस्तावेज को पहुँचना होगा तथा ग्रामीणों  को उनके अधिकारों के प्रति सजग करना होगा यह कार्यक्रम एक मिशन के रूप में चलाया जाना चाहिए विश्वविद्यालय शोधार्थी छात्रों राजनीतिज्ञ आदि को इसमें बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए। प्रोफेसर अतवीर सिंह ने बड़े कॉरपोरेट घरानों एवं लघु और सीमांत कृषि में लगे कामगारों के लिए सरकार की ऋण नीति की तुलनात्मक समीक्षा करते हुए बताया कि सरकार की नीति अमीर को और अमीर बनाने एवं गरीब को दीवार के विरुद्ध चलने को मजबूर  करती है। कार्यक्रम का संचालन उत्तर प्रदेश ग्राम प्रधान संगठन के प्रदेश अध्यक्ष  डीपी सिंह और  वीरेश तरार ने संयुक्त रूप से किया। वक्ताओं में मुख्य रूप से पूर्व आईएएस प्रभात कुमार राय, डीवी कपिल, पूर्व आईएफएस, प्रो अतिवीर सिंह, मेरठ विश्वविद्यालय, मनीष भारती, शेषराज पंवार सहारनपुर, डॉक्टर मेराजुद्दीन पूर्व मंत्री, डॉ पुष्पेंद्र ढाका, कुलदीप उज्ज्वल डॉ रविंद्र प्रताप राणा, एडवोकेट चौ यशपाल सिंह, डॉ दिनेश कुमार शर्मा, गौरव सिंह तेवतिया शोधार्थी छात्र-छात्रा नितिन कुमार, शहरीन, प्रो. रूपेश त्यागी ने भी अपने विचार व्यक्त किया।