बढ़ता अपराध और समाज

बढ़ता अपराध और समाज

दी न्यूज़ एशिया समाचार सेवा।

बढ़ता अपराध और समाज

....किसी भी समाज में अपराध का बढ़ना समाज में असंतुलन की स्थिति पैदा करता है। इसलिए भारत में बढ़ती अपराध की दर चिंता का कारण बनता जा रहा है। ऐसा नहीं कि हमारे देश में अपराध रोकने के लिए कोई कानून नहीं है या अपराधियों को दंडित करने के प्रावधान नहीं हैं, पर यह कह सकते हैं कि संभवत: लोगों में कानून का भय समाप्त हो चुका है। हाल ही में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2021 में महिलाओं के विरुद्ध प्रति घंटे उनचास अपराध दर्ज किए गए। यानी एक दिन में औसतन छियासी मामले दर्ज किए गए। 2021 में बलात्कार के 31,677 मामले दर्ज हुए, जबकि 2020 में यह संख्या 28,046 थी। इसी तरह अगर राज्यवार महिलाओं के विरुद्ध अपराध की दर देखी जाए तो राजस्थान (6,337) पहले स्थान पर है, फिर मध्य प्रदेश (2,947), महाराष्ट्र (2,496), उत्तर प्रदेश (2,845) और दिल्ली (1,250) हैं।
महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में बलात्कार, हत्या के साथ बलात्कार, दहेज, तेजाब हमले, आत्महत्या के लिए उकसाना, अपहरण, जबरन शादी, मानव तस्करी, आनलाइन उत्पीड़न जैसे अपराध शामिल हैं। समाजशास्त्रीय दृष्टि से देखें, तो जब समाज में अपराध की दर असामान्य रूप से बढ़ने लगती है तो इसका स्पष्ट अर्थ होता है कि उस समाज के नागरिकों में सामूहिक भावनाओं के प्रति प्रतिबद्धता बहुत कमजोर है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अश्लील विज्ञापनों और नग्न प्रदर्शनों ने समाज में व्यभिचार को बढ़ावा दिया है। हर व्यक्ति रातोरात अकूत धन कमाना चाहता है, परिणामस्वरूप समाज में अपराध तेजी से बढ़ रहा है।  आज के उपभोक्तावादी समाज में व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को नहीं, बल्कि लालसाओं को पूरा करने पर बल देता है। और यह सच है कि आवश्यकताएं तो पूरी की जा सकती हैं, लेकिन लालच कभी समाप्त नहीं होता।  दिल्ली के बाद मुंबई, बंगलुरु जैसे विकसित और स्मार्ट महानगरों का स्थान आता है, जहां इस तरह के अपराध अधिक होते हैं। विकसित और प्रगतिशील नगरों और राज्यों में अपराध की घटनाएं अधिक हो रही हैं, तो क्या यह तर्क दिया जा सकता है कि विकास और अपराध के बीच कोई सहसंबंध है। चूंकि आंकड़ों से ज्ञात होता है कि जिन नगरों में विकास अधिक हुआ है वहां अपराध की दर भी बढ़ी है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बलात्कार स्त्रीत्व का अपमान तो है ही, एक जघन्य अपराध भी है। इसे एक विरोधाभास ही कहा जा सकता है कि एक तरफ हम विश्व मंच पर महिला सशक्तिकरण, लैंगिक समानता तथा विकास कार्यों में महिलाओं की समान सहभागिता जैसे मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं (या दिखावा कर रहे हैं), दूसरी तरफ महिलाओं के विरुद्ध बढती हिंसा और दुर्व्यवहार के मामलों पर मौन संस्कृति के पक्षधर बने हुए हैं।